Friday, July 9, 2010
मैं हार गया
मैं हार गया
और...
जित हुई कविता की
लम्बी लड़ाई के बाद.
उसके पक्ष में खड़ी थी
कवियों की पूरी फ़ौज,
और मैं था अकेला.
जित तो उसकी होना ही था.
फिर मैं.....
समर्पण कर दिया खुद को
उसके सामने,
और रंग गया उसकी रंगों में.
हमारी लड़ाई
द्वितीय विश्वयुद्ध
या पानीपत की नहीं,
हम वैचारिक लड़ाई
लड़ रहे थे.
जो एक दो नहीं,
पुरे सात वर्षों तक चली.
मैं चाहता था कविता को,
लय के साथ जीना चाहिए
पुरे श्रृंगार के साथ रहना चाहिए.
लेकिन वह....
आधुनिक लड़कियों के समान,
बिताना चाहती है
अर्धनग्न,
कामुक,
और फूहड़ जिंदगी.
लय हीन, चाल है उसकी.
जब चलती है राहों में
तो दीखता है,
उसका हर अंग.
वह
किसी से भी
ले सकती है लिफ्ट
और
कभी भी शौरी कहकर
छोड़ सकती है साथ.
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इस हार में भी एक जीत है।
ReplyDelete................
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?