कविमन
कल्पनाओं में
उड़ता है कविमन
आजाद पंछी की तरह.
वह विचरण करता है
खुले आकाश में,
इधर से उधर तक.
वह पहुंचना चाहता है
अछोर आकाश के छोर तक.
वह देखना चाहता है
नीले आकाश के
उस पार की दूनिया.
न तो वह थकता है
न ही बैठता है
सुस्ताने के लिए.
वह चाहता है
दो पल का आराम
लेकिन...
नीले आकाश के पार
रंग विरंगी पेड़ों के निचे.
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जब कभी आप ये फैसला न ही कर पायें कि आज कवि की थाली के लिए खाने में कौन सी सब्ज़ी बनानी है तो फिर मिक्स वेज सब्जी..............तो है ही. तो आपको सब्जी का स्वाद कैसा लगा हमें भी बताइए.