Monday, July 19, 2010

कविता का सागर


आज एहसास हुआ की...
मुझे प्यार हो गया है
कविता से.
जो सताती है
राहों में...
और झूल जाती है
हमारी बाहों में.
न तो समय,
और न ही स्थान
निश्चित है,
हमारी मुलकात की.
फिर भी....
मिल जाती है हमेशा,
रेड लाईट पर.
फैक्ट्री के दरवाजे पर
खड़ीं रहती है घंटों....
हमारे इन्तजार में.
गलियों में गुजरती है,
हमारे साथ-साथ.
शायद.....
कविता भी करने लगी है,
हमसे प्यार.
न हमने किया इजहार
न उसने...
फिर भी तन-मन में
बस गई है कविता.
उसके बिना
बेचैन हो जाता हूँ मैं.
ऐसा लगता है मुझे,
पागल हो जाउंगा
एक दिन......
हाँ देखना तुम
मैं पागल हो जाउंगा
कविता के प्यार में.
खो जाना चाहता हूँ,
उसकी बाँहों में.
खुद को ....
बिछा देना चाहता हूँ,
उसकी राहों में.
अब मेरा एक ही मकसद है,
खुद को समर्पित कर
बन जाना..
सिर्फ और सिर्फ
कविता का सागर.

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जब कभी आप ये फैसला न ही कर पायें कि आज कवि की थाली के लिए खाने में कौन सी सब्ज़ी बनानी है तो फिर मिक्स वेज सब्जी..............तो है ही. तो आपको सब्जी का स्वाद कैसा लगा हमें भी बताइए.