कविता अपने दिल से ........ और दिल हमारा है तुम्हारा क्या.........
Wednesday, June 9, 2010
आदमी
सुबह से शाम तक की, भाग दोड़ में, भूल जाता है, अपने आप को. फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के भीड़ में, खो जाता है, उसका वजूद. फिर ....... पता नहीं कब, बचपन से जवानी और ....... जवानी से बुढ़ापा तक की सफ़र, पूरा कर लेता है, आदमी.
जब कभी आप ये फैसला न ही कर पायें कि आज कवि की थाली के लिए खाने में कौन सी सब्ज़ी बनानी है तो फिर मिक्स वेज सब्जी..............तो है ही. तो आपको सब्जी का स्वाद कैसा लगा हमें भी बताइए.
Very Good Sir Jee
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