Wednesday, June 9, 2010

नारी


समझना
एक नारी को
शायद........
मुश्किल ही नहीं,
असंभव है.
नारी,
आग का वह गोला है
जो जला सकती है,
पूरी दुनिया.
नारी,
पानी का सोता है
वह बुझा सकती है,
जिस्म की आग.
नारी,
एक तूफान है
वह मिटा सकती है,
आदमी का वजूद.
नारी,
वरगद की छाया है
वह देती है, थके यात्री को,
दो पल का आराम.
नारी,
एक तवा है
वह खुद जलकर मिटाती है,
दूसरों की भूख.
नारी,
पवित्र गंगा है
वह धोती है सदियों से,
पापियों का पाप.
नारी,
मृग तृष्णा है
जो पग बढ़ाते ही,
चली जाती है दूर.
नारी,
लाजबन्ती है
वह मुरझा जाती है,
छु देने के बाद.
नारी,
सृष्टी है
वह रचती है रोज,
एक नई संसार.

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जब कभी आप ये फैसला न ही कर पायें कि आज कवि की थाली के लिए खाने में कौन सी सब्ज़ी बनानी है तो फिर मिक्स वेज सब्जी..............तो है ही. तो आपको सब्जी का स्वाद कैसा लगा हमें भी बताइए.